वर्तमान को समझने के लिए इतिहास को जानना आवश्यक है। भारतीय फिल्मों का इतिहास गौरवशाली रहा है। बॉलीवुड ना कहकर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री कहना ज्यादा सार्थक है। आजादी के पहले मुंबई कोलकाता और लाहौर हिंदी सिनेमा के केंद्र हुआ करते थे, आजादी के पश्चात यह केंद्र मुंबई शिफ्ट हुए। मुंबई कोलकाता और लाहौर को भारतीय फिल्मों की त्रिवेणी कहा जा सकता है। 1947 के बाद लाहौर सरस्वती की तरह विलुप्त हो गया। पंजाब की लोक संस्कृति हर भारतीय के दिल को छू जाती है यही कारण है कि अधिकांश सफल नायक पंजाब से संबंध रखते थे । यह बात तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल में कार्यक्रम के दौरान फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने कहीं।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता से पहले नायक और नायिका फिल्म स्टूडियो में वेतन पर काम करते थे। स्वतंत्रता के पश्चात स्टारडम आने के कारण आज एक्टर अपनी भूमिकाओं को प्रमुखता देता है। कहानी संवाद पटकथा से कोई विशेष लगाव उसका नहीं होता। फिल्मों में छरण की शुरुआत यहीं से होती है। हिंदी सिनेमा यूरोपीय सिनेमा से प्रभावित दिखता है, लेकिन हमें उन मनोभावों को लाना होगा जो भारतीय परंपरा और मूल्यों को उजागर कर सकें। यद्यपि सिनेमा जगत में नए कलाकारों को स्थापित होने में अनेक कसौटियों पर खरा उतरना होता है। लेकिन प्रतिभाएं अंकुर की तरह होती हैं और पत्थर फाड़कर निकल आती है। अतः जो प्रतिभावान कलाकार है वह अपना स्थान बनाने में आवश्यक सफल होता है कार्यशाला के दूसरे सत्र में फिल्म समीक्षा लेखन में उन्होंने कहा कि फ़िल्म समीक्षा व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का तरीका है हमें निष्पक्षता के आधार पर किसी भी फिल्म की समीक्षा करनी चाहिए तात्कालिक प्रतिक्रिया समीक्षा नहीं होती है।
समीक्षा की प्रक्रिया उसके बाद शुरू होती है, जिसमें कहानी कथावस्तु संवाद स्क्रीनप्ले कैमरा एंगल संगीत ध्वनि प्रभाव संपादन आदि का विश्लेषण होता है। समीक्षा लेखन के लिए अपने इतिहास और संस्कृति का ज्ञान होना आवश्यक है। फ़िल्म समीक्षा की मुख्य बात पहले ही पैराग्राफ में होनी चाहिए निष्कर्ष बाद में देना चाहिए निष्कर्ष का संकेत पहले पैराग्राफ में ही होना चाहिए।
डॉक्टर साकेत रमन ने कहा कि भारतीय सिनेमा के 100 वर्षों से अधिक के इतिहास में हम देखते हैं कि सिनेमा ने सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सोच विचार खान-पान रहन-सहन जीवन शैली काफी हद तक सभी क्षेत्र सिनेमा से प्रभावित हुए हैं। समाज में विमर्श स्थापित करने में फिल्मों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने सभी का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन बीजेएमसी की छात्रा अनुष्का चौधरी ने किया। इस दौरान प्रोफेसर मनोज कुमार श्रीवास्तव लव कुमार नेहा कक्कर बीनम यादव मितेंद्र गुप्ता आदि मौजूद रहे।